पानी बचाओ, पेड़ लगाओ ! खुद बचना है तो यह तरीका अपनाओ

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विश्व पर्यावरण दिवस पर जगह जगह पर्यावरण को लेकर चिंताएं जाहिर की जा रही हैँ। जगह जगह आयोजन हो रहे हैं। लेकिन विडंबना यह है कि ऐसे दिवस पर जागरूक दिखने वाले लोग भी इसकी महत्ता को जीवन में ठीक से नहीं अपनाते हैं। इसके महत्व को समझने के लिए इतना ही गौर करना जरूरी है कि हम अपनी आने वाली पीढ़ी को क्या देकर जा रहे हैँ। अगर आपने इतना गौर कर लिया तो समझिए कि आप पर्यावरण को लेकर जागरूक हो गए। देखिए अपने देश की क्या हालत है ..पिछले कुछ दशक में हम पानी खरीदकर पीते पीते अब शुद्ध हवा के लिए मशीनें घर में लगाने लगे हैँ। प्रदूषण की मार इतनी जबरदस्त है कि देश के सभी महानगरों की बात तो छोड़िए छोटे छोटे शहरों में इसका स्तर पूरे साल भयावह स्थित में होता है। प्राकृतिक संपदाओं से भरपूर अपने देश में हम न पानी की चिंता कर रहे हैं न हवा की। ये दो ऐसी चीजें थीं जो प्रकृति ने हमें बिना किसी कीमत के सौंपा था और हम उसे इस हाल में ले आए कि आज वो सबसे कीमती है। निश्चित तौर पर यह हमारी लापरवाही का परिणाम है।

जागरूकता जरूरी, तभी होगा समाधान

यह तो हम सब जानते हैं कि पानी के भंडार, स्रोत और पेड़ पौधों की रक्षा कर ही हम पर्यावरण बचा सकते हैं लेकिन जब हम समझ जाएंगे कि इनकी रक्षा करके ही हम अपनी जान बचा सकते हैं, अपना जीवन बचा सकते हैं तो इस काम में हम जुट जाएँगे। जब तक लोगों को यह समझ नही आएगा कि पर्यावरण से खिलवाड़ करके किसी दूसरे का नुकसान नहीं बल्कि अपना ही नुकसान कर रहे हैं, तब तक हम उस दिशा में काम नहीं कर पाएंगे कि जिससे पर्यावरण को संतुलित किया जा सके। आंकड़े इतने भयावह हैं कि उनका जिक्र करने में डर लगता है। मशहूर गांधीवादी चिंतक अनुपम मिश्र अक्सर कहा करते थे कि हम कई नदियों को पी चुके हैं, भगीरथी पी गए, सरस्वती पी गए , यमुना किसी लायक छोड़ी नहीं और अपने जीवन काल में ही गंगा पी जाएंगे। उनकी इस बात की गंभीरता का अँदाजा आप इसी से लगा सकते हैं कि जब आप याद करें कि आपके बचपन के दिनों में पानी कैसे मिलता था ? पानी जमीन के कितने अंदर से आ जाता था, अब उसकी क्या हालत है ? अगर पानी का स्तर जमीन से पाताल की ओर लगातार चला जा  रहा है तो क्या यह भयावह नहीं है। गर्मी का मौसम है और पूरे देश में जिस कदर की गर्मी पड़ रही है उससे यह अनुमान करना कठिन नहीं है कि हमने थोड़ी-बहुत नहीं कुछ ज्यादा ही गड़बड़ियां कर ली हैं। पिछले 25 सालों में दुनिया का तापमान जिस कदर बढ़ा है वैसा पिछले 200 साल में नहीं बढ़ा । 1880 से लेकर 1990 तक कुल 0.8 डिग्री सेल्यिस तापमान में बढ़ोतरी हुई लेकिन पिछले पचीस-तीस सालों में यह आंकड़ा 0.5 के करीब है। पिछले पच्चीस सालों में दुनिया भर में 3 फीसदी जंगल खत्म कर चुके और अपने देश में यह आंकड़ा 5.5 फीसदी है।  आप अंदाजा लगा सकते हैं कि हम अपनी आने वाली पीढ़ी को क्या सौंप कर जा रहे हैं।

पर्यावरण के प्रति जागरूकता नहीं बढ़ाई गई तो जीवन संकट में पड़ जाएगा। हम अपने जीवन काल में वो सब देख रहे हैं जिसकी कल्पना हमने बचपन में नहीं की थी और हम अपने जीवन काल में और इतनी बुरी हालत देखेंगे जिसकी कल्पना हम नहीं सकते । फिर भी मेरा मानना है कि जब जागो तभी सवेरा, अभी भी बहुत देर नहीं हुई है, अभी भी बहुत कुछ ठीक किया जा सकता है। हम हर साल अगर अपने परिवार के सदस्यों की गिनती कर उतने ही पेड़ लगाते रहे, उसका पोषण करते रहे तो वो पेड़ हमारी अगली पीढ़ी का सेवन जरूर करेगी। तो देर किस बात की,  आज से अभी से तैयार हो जाईए .. एक पौधा, जहां जगह मिले लगा डालिए क्योंकि यह हमारे बच्चों औऱ उनके बच्चों के भविष्य का सवाल है । कम से कम इतनी कोशिश तो होनी ही चाहिए हमारे बच्चे हमें यह कहते हुए नहीं कोसें कि हमारे पुरखे हमारे हिस्से की हवा खा गए और पानी पी गए। उनके हिस्से का छोड़ जाना हमारा कर्तव्य औऱ धर्म भी तो है।

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