पूर्वी चंपारण में गड़बड़ा सकता है NDA का गणित

क्या कहता है चम्पारण का चुनावी गणित
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छठे दौर के बिहार में होने वाले 8 सीटों पर कई दिग्गजों की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है। इसी में एक नाम है देश के कृषि मंत्री राधामोहन सिंह । राधामोहन सिंह लगातार पिछले 2 बार से सांसद हैं, कुल जमा वो यहां से 5 बार सांसद रह चुके हैं और घोषणा कर चुके हैं यह उनका आखिरी चुनाव है। राधामोहन सिंह के लिए, प्रधानमंत्री और पार्टी अध्यक्ष समेत बीजेपी के लगभग सभी स्टार प्रचारक इलाके में चुनाव प्रचार कर चुके हैं और आखिरी दिन फायर ब्रांड हिंदू लीडर, यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने जिले के अरेराज में सभा की। अरेराज में भगवान शिव का प्रसिद्ध मंदिर है। आखिरी दौर में जिले में घूमते हुए इतना तो साफ हो गया कि इस बार यहां से राधामोहन सिंह की राह आसान नहीँ।

एक तरफ यह सीट राधामोहन सिंह के लिए प्रतिष्ठा की लड़ाई है तो वहीं पूर्व केंद्रीय राज्यमंत्री अखिलेश के लिए भी जीने-मरने के प्रश्न जैसा हो गया। अखिलेश सिंह खुद तो कांग्रेस में हैं लेकिन यहां से उनके 28 वर्षीय पुत्र आकाश सिंह चुनाव मैदान में हैँ। राधामोहन सिंह राजपूत के वोट बैंक तो आकाश सिंह भूमिहार वोट बैंक के सहारे बाकियों को साधने में जुटे हैं। दोनों पार्टियां जमकर पैसा खर्च कर रही है और गांवों में जब कार्यकर्ताओँ से बात करते हैं तब उनके खर्च का अनुमान लगने लगता है लेकिन आम वोटर पहले सांसद के रिपोर्ट कार्ड से नाराज था अब उनके प्रचार करने के तरीके से नाराज है। आम वोटरों का कहना है कि बड़ी बड़ी सभाएं औऱ बड़े बड़े मंच तो खूब सज रहे हैं लेकिन नेताजी आम लोगों से मिलते हुए कम देखे गए हैं। कई इलाकों में पार्टी के कुछ विधायकों को विरोध का भी सामना करना पड़ा है साफ है कि नाराजगी है।

प्रचार के आखिरी दिन जब हम योगी आदित्यनाथ की सभा में पहुंचे तो एक बात साफ हो गई कि सभाओँ में आने वाली भीड़ कभी वोटर नहीं होती। सभा स्थल पर योगी पहुंचे, भाषण शुरु किया लेकिन जत्थे के जत्थे मोटरसाइकिल सवार युवा अपनी बाइक में झंडे लगाए घरों की ओर जाते दिखे या फिर पेट्रोल पंप पर लाइन लगाए दिखे। साफ है कि पैसे और पेट्रोल के नाम पर बुलाई गई भीड़ वोटर नहीं होता, वोटर खुद ब खुद सभा में आता है और उसकी निष्ठा बातों में साफ झलक जाती है। हमें दोनों तरफ के लोग सभा स्थल पर दिखे और मिले।

योगी आदित्यनाथ ने अरेराज वाली सभा में जमकर मोदी गुणगान किया , “राष्ट्रवाद”, हिंदु्त्व से बाहर निकलकर पहली बार चुनाव प्रचार में योगी युवाओँ को रोजगार देने की बात करते हुए दिखे। छठे दौर के चुनाव प्रचार के आखिरी दिन सांसद की रिपोर्ट कार्ड पेश करने की कोशिश की। लेकिन सभा से बाहर निकलने के बाद इलाके में वैसा उत्साह नहीं दिखा जैसा लहर में होता है। लोकसभा के कई विधानसभा क्षेत्र में JDU का खासा दबदबा रहा है और धरातल पर उसका साथ खुलकर नहीं मिलने की वजह से नुकसान की आशंका है। जातिगत आंकड़ों में देखें तो कुशवाहा, मुस्लिम-यादव, और दलित का एक बड़ा हिस्सा महागठबंधन की ओर झुकता दिख रहा है। इलाके के दो बड़ी जातियां राजपूत और भूमिहार अपने अपने उम्मादवार के साथ खड़ी हैं। पिछड़ी जातियों के कुछ स्थानीय नेताओँ ने स्पष्ट तौर पर कहा कि वोटिंग को लेकर पिछड़ा समुदाय ज्यादा समझदार और रिजल्ट को प्रभावित करने वाला है। कुछ 6 विधानसभा में तीन-तीन विधानसभा में दोनों उम्मीदवार आखिरी दौर तक बढ़त बनाए हुए हैं। कुछ समय पहले तक त्रिकोणीय मुकाबला बनाने की कोशिश कर रहे  में भाकपा के प्रभाकर जायसवाल लड़ाई में दूर दूर तक नहीं हैं, महज वोटकटवा की स्थिति में रहने वाले हैं।

जातिगत समीकरण देखें तो राधामोहन सिंह के लिए आसान नहीं है तो बहुत मुश्किल भी नहीं है, राजपूत और वैश्य समाज का खासा दबदबा है और पिछड़ी जातियों का ठीक ठीक हिस्सा बीजेपी का कैडर वोटर है। लेकिन इससे भी उपर जो बात है यहां इस बार के चुनाव में वो है पैसा, गांधी के चंपारण के इस इलाके में इस बार सिर्फ पूर्वी चंपारण लोकसभा सीट पर तकरीबन 200 करोड़ रुपए खर्च होने का अनुमान है। हर इलाके में पानी की तरह बहाए जा रहे पैसा का जिक्र है और दोनों उम्मीदवार हम बड़े तो हम बड़े के चक्कर में जमकर पैसा खर्च कर रहे हैं, इलाके के वोटरों का आंकड़ा तो कहीं और ज्यादा है लेकिन हमने इसको ठीक से समझने के बाद इस खर्च का आकलन किया है। ऐसे में बिना पैसे के लड़ रहे युवा और समाजसेवी उम्मीदवार अनिकेत पांडे को कौन पूछ रहा है। लोकसभा का इलाका इतना बड़ा होता है कि वो अपनी पहचान बनाने तक सीमित रह जाएंगे।

कुल मिलाकर देखें तो चंपारण की जिन सीटों पर चुनाव हो रहे हैं उसमें एक यह सीट ऐसी है जहां कांटे की लड़ाई है और हार-जीत का आंकड़ा 40-60 हजार के बीच होने वाला है।

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