12 मई को चम्पारण में वोट पड़ेंगें, छठे दौर के इस मतदान के लिए सभी पार्टियों ने अपनी पूरी ताकत झोंक रखी है। चम्पारण की तीनों सीटों पर चुनाव प्रचार अब पूरे उफान पर है, सभी बड़ी पार्टियों के कद्दावर नेता लगातार चम्पारण और उसके सटे इलाकों में चुनावी दौरे पर हैं, प्रधानमंत्री नरेंद मोदी भी 4 मई को चंपारण के वाल्मीकिनगर में रैली करेंगे, गौरतलब है कि यह सीट बीजेपी के पास थी लेकिन गठबंधन में सहयोगी JDU के पास चली गई और अब स्टार प्रचारक मोदी अपने सहयोगी दल के उम्मीदवार के लिए ही यहां रैली करेंगे। साथ ही गौर करने वाली बात है कि पूरे इलाके में चुनाव प्रचार पर डिजिटल क्रांति का प्रभाव साफ तौर पर हावी दिख रहा है। पिछले चुनाव के वक्त ऐसी उम्मीद नहीं थी कि इतनी जल्दी सोशल मीडिया और डिजिटल माध्यमों से चुनाव प्रचार पर असर इन इलाकों में भी इस कदर नजर आने लगेगा। इसके जरिए चुनाव प्रचार अनोखे अंदाज में हो रहा है। इस चुनावी समर के उफान पर जानिए चंपारण का चुनावी गणित।
पूर्वी चम्पारण में राधामोहन सिंह का आखिरी चुनाव
पूर्वी चंपारण लोकसभा सीट पिछले दो बार से लगातार बीजेपी के पास है, उसके पहले यहां ऐसा कहा जाता था कि मोतिहारी बदल बदल कर सांसद चुनता है। यहां से एक तरफ अपना आखिरी चुनाव लड़ने की घोषणा कर चुके NDA प्रत्याशी केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री राधामोहन सिंह ताल ठोक रहे हैं, तो दूसरी तरफ उनके सामने महागठबंधन के युवा प्रत्याशी आकाश कुमार सिंह कड़ी टक्कर देने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगाए हैं। भाकपा प्रत्याशी प्रभाकर जायसवाल संघर्ष को त्रिकोणीय बनाने के प्रयास में हैं, पहले चर्चा थी कि यहां से पूर्व सांसद कमला मिश्र मधुकर की बेटी लेफ्ट की ओर से उम्मीदवार होंगी लेकिन आखिरी अवसर पर टिकट जायसवाल को मिल गया। साथ ही यहां से निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर इलाके के युवा सामाजिक कार्यकर्ता अनिकेत पांडे अपनी युवा शक्ति के सहारे चुनाव को दिलचस्प बनाने की कोशिश में लगे हैं। अनिकेत इलाके में लगातार अपने सामाजिक कामों की वजह से चर्चा में रहते हैं और चम्पारण नवयुवक सेना भी बनाई हुई है, जिस संगठन के बैनर तले काफी एक्टिव रहते हैं। आकाश सिंह भले ही जिले के लिए नए चेहरे हैं, लेकिन उनके पिता अखिलेश प्रसाद सिंह का यहां से पुराना नाता रहा है।अखिलेश सिंह 2004 में राधामोहन सिंह को हराकर संसद पहुंच चुके हैं। सभी प्रत्याशियों के लिए इस बार का चुनाव कुछ अलग अंदाज का लग रहा है।
डॉ. संजय जयसवाल की राह है आसान
पश्चिमी चम्पारण लोकसभा सीट से तीसरी बार बीजेपी के टिकट पर मैदान में जमे हैं डॉ.संजय जयसवाल, संजय पिछले दो बार से लगातार इलाके से सांसद हैं और दोनों बार मशहूर फिल्मकार प्रकाश झा को मात देकर संसद पहुंच हैं। एंटी इंकबेंसी के बावजूद उनके मुकाबले कोई मजबूत उम्मीदवार नहीं होेने से उनकी लड़ाई चंपारण की तीनों सीटों पर सबसे आसान है। मुख्य प्रतिद्वंदी के तौर पर RLSP की टिकट पर मैदान में ब्रजेश कुशवाहा मैदान में हैं, हालांकि कुशवाहा समाज का वोट इलाके में काफी अच्छी तादात में है लेकिन उम्मीदवार पहली बार चुनावी समर में हैं, और अचानक मैदान में कूदे हैं इसलिए सिर्फ गठबंधन के वोट के सहारे ही अपनी लड़ाई लड़ रहे हैं। डॉ.संजय जयसवाल लगाातर इलाके में रहते हैं, खुद 10 साल से सांसद हैं और उनके पिताजी भी तीन बार इस सीट से सांसद रह चुके हैं,
वाल्मिकीनगर की दिलचस्प है लड़ाई
वाल्मिकी नगर में लड़ाई दिलचस्प है। 2014 में यहां से सतीश दुबे बीजेपी सांसद के तौर पर सदन पहुंचे थे। इस बार उनका टिकट कट गया और सीट JDU के खाते में चली गई, दुबे शुरु में बगावत पर उतारू थे, कुछ इलाके में उनका वर्चस्व है और उसी ताकत पर वो निर्दलीय उम्मीदवार के तौर मैदान में जमने का मन बना चुके थे, आनन-फानन में मनाने के लिए प्रदेश प्रभारी स्पेशल चार्टर विमान से दिल्ली ले गए, अमित शाह से मुलाकात कराई और उसके बाद वो सहयोगी का साथ देने को तैयार हुए। JDU उम्मदीवार बैद्यनाथ महतो यहां से पहले भी सांसद रह चुके हैं। पिछली बार भी सतीश दुबे के खिलाफ मैदान में थे , लेकिन इस बार इस सीट से बीएसपी ने भी अपना उम्मीदवार उतारा है। BSP के उम्मीदवार अपनी जाति और पैसे की ताकत पर मैदान में हैं, साथ ही महागठबंधन की ओर से पूर्व केंद्रीय रेल मंत्री और बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री केदार पांडे के पोते शास्वत केदार चुनाव मैदान में है। शास्वत युवा हैं लेकिन इलाके से जुड़ाव नहीं होना उनको नुकसान पहुंचा रहा है। लेकिन इन तीनों उम्मीदवारों ने सही मायनों में चंपारण की इस सीट को त्रिकोणीय बना दिया है।
धीरे धीरे जैसे जैसे चुनाव नजदीक आएगा पूरे देश में चुनावी समीकरण तेजी से बदलेंगे लेकिन इस इलाके के समीकरण में ज्यादा फेरबदल होने की गुंजाईश नहीं है। एक बात स्पष्ट है कि इस इलाके से इस बार कोई भी बाहुबली या अपराधी प्रवृति का व्यक्ति संसद नहीं पंहुचेगा, गांधी के चंपारण से कोई अपराधी संसद पंहुचे यह ठीक भी नहीं है, हालांकि इस बार कई उम्मीदवारों ने अपनी जोर आजमाईश की लेकिन हालात देखकर हालात से समझौता कर लिया। एक तरफ जहां चम्पारण की सीटों पर NDA आश्वस्त दिख रही है वहीं महागठबंधन कम से कम एक सीट अपने कब्जे में लाने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा रही है। अब कमान जनता के हाथ में है, चुनावी गर्मी के बीच मौसमी गर्मी के वजह से अगर वोट प्रतिशत कम हुआ तो आंकड़े में फेरबदल हो सकता है।