यूरोप की सरकारें हीं नहीं जनता भी यूक्रेन के साथ

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रूस और यूक्रेन का युद्ध एक ऐसे मुहाने पर खड़ा है जहां से इसकी परिणति कुछ भी हो सकती है। रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की जिद के बाद जैसे जैसे अमेरिका, ब्रिटेन और यूरोपीय संघ ने रूस पर आर्थिक और राजनीतिक पाबंदियां लगानी शुरु कीं, पुतिन वैसे वैसे और उग्र होते गए। ब्रिटिश विदेश मंत्री लिज ट्रूस की महज कुछ पाबंदियों से नाराज होकर पुतिन ने अपने न्यूक्लियर सिस्टम को अलर्ट पर रहने का आदेश दे दिया। जिसकी ब्रिटेन और अमेरिका ने और कड़े शब्दों में आलोचना की। यहां यूरोप में मामला सिर्फ सरकारों के विरोध तक सीमित नहीं है। दरअसल यूक्रेन पर रूस के हमले के तुरंत बाद से ही पूरे ब्रिटेन समेत यूरोप में हमले के खिलाफ आवाज उठनी शुरु हो गई थी। हमले के चौथे दिन रविवार को मुझे पूरा भरोसा था कि लंदन के ट्रैफलगर स्क्वायर पर कुछ लोग यूक्रेन के पक्ष में जरूर जमा होंगे और हुआ भी वही। दरअसल लंदन का ट्रैफलगर स्क्वायर एक ऐतिहासिक विरासत की जगह है। आप उसे दिल्ली के इंडिया गेट और जंतर मंतर का मिला हुआ स्वरूप कह सकते हैं। रविवार को ट्रैफलगर स्क्वायर पर जमा भीड़ ये बताने के लिए काफी थी न सिर्फ ब्रिटेन की सरकार बल्कि यहां के लोग भी यूक्रेन के साथ हैँ लेकिन उनको रूस या रूस की जनता से कोई विरोध नहीं है बल्कि सीधे तौर पर वो पुतिन की साम्राज्यवादी नीतियों के खिलाफ अपनी आवाज़ बुलंद कर रहे हैँ। हजारों लोग वहां घंटों तक प्रदर्शन करते रहे जिसमें सैकड़ों रूसी नागरिक भी थे जो सीधे तौर पर इस युद्ध के लिए रूस की सत्ता को ही जिम्मेदार मान रहे थे और उनके हाथों की तख्तियां कह रही थीं कि वो युद्ध नहीं चाहते, वो यूक्रेन के पक्ष में इसलिए खड़े हैं क्यूंकि वो चाहते हैं कि किसी भी इंसान की व्यक्तिगत आजादी को सबसे ज्यादा महत्व दिया जाना चाहिए।

पूरा ट्रैफलगर स्क्वायर नीले और पीले रंग का समंदर नजर आ रहा था क्यूंकि हर किसी के हाथ में, कपड़ों पर तख्तियों पर यूक्रेन का ही झंडा था। प्रदर्शनकारियों की बातों से व्लादिमीर पुतिन के प्रति क्षोभ दिख रहा था तो साथ ही इस युद्ध की पीड़ा और निराशा उनके चेहरों पर साफ झलक रही थी। दरअसल यूक्रेन के समर्थन में शनिवार से ही ब्रिटेन के अलग अलग हिस्सों में प्रदर्शन शुरु हो गए थे जो लगातार जारी हैँ। यूक्रेन के नागरिक जो अलग अलग वीसा पर ब्रिटेन में रहते हैं उनका हौसला बढ़ाने के लिए न्यूकैसल, ब्राइटन, एक्सेटर, एडिनबर्ग, ग्लासगो, नॉटिंघम, कैम्ब्रिज, ऑक्सफोर्ड, श्रुसबरी और  नॉर्विच में कहीं सैकड़ों तो कहीं हजारों की तादात में लोग जमा हुए जो स्पष्ट तौर पर ये जानते थे कि इस युद्ध के दूरगामी परिणाम होंगे, ब्रिटेन समेत पूरे यूरोप में महंगाई बढ़ेगी लेकिन फिर भी वो रूस पर तरह तरह की पाबंदी के पक्षधर थे। पुतिन के खिलाफ लिखे नारे की तख्ती संभालते हुए रिचर्ड ने कहा कि ब्रिटेन जिस तरह के आर्थिक प्रतिबंध रूस पर लगा रहा है उसके नतीजे का अंदाजा हमें है, सबसे पहले हमें फ्यूल के लिए भारी कीमत चुकानी होगी। रिचर्ड की बात सही थी क्यूंकि अगले ही दिन ब्रिटेन में पेट्रोल की कीमतों में जबरदस्त उछाल देखने को मिला जो अब तक की सबसे ऊंची कीमत पर जा पहुंचा है लेकिन यहां के लोगों से जब बात कीजिए तो साफ दिखता है कि मानवाधिकार उनके लिए सबसे पहली पायदान पर है लिहाजा युद्ध का विरोध हर कोई कर रहा है।

ओलेना जिनका बचपन यूक्रेन में गुजरा लेकिन अब वो अपने बेटे के साथ ब्रिटेन में रहती हैं उन्होंने कहा: “हमें आजादी मिली तो हमने सोचा था कि यह हमेशा के लिए थी, हमने रूस से ऐसी उम्मीद कभी नहीं की थी। मुझे बहुत खुशी है कि मेरे दादा-दादी मर चुके हैं, क्योंकि इस युद्ध से उनका दिल बैठ जाता और उनकी जान चली जाती। जिस बेलारूस में यूक्रेन और रूस के प्रतिनिधियों के बीच बातचीत के जरिए शांति के प्रयास किए गए वहीं की रहने वाली नतालिया जो अब यूके में रहती हैं, ने अपना अलग डर भी जाहिर किया और कहा पुतिन यूक्रेन तक नहीं रूकेंगे, दूसरे छोटे यूरोपीय देशों के लिए भी आने वाले समय संकट के होंगे। साथ ही हमने देखा कि रूस के नागरिक भी जो ब्रिटेन में रह रहे हैं वो खुलकर यूक्रेन के लोगों के साथ खड़े हैं, हालांकि कुछ अपना नाम बताने से हिचकिचाते हैं लेकिन विरोध प्रदर्शन में हिस्सा लेने से नहीं कतराते, आंद्रेई पोस्टिल्याकोव ने कहा कि “मैं रूस में किसी को भी नहीं जानता जो इस युद्ध का समर्थन करता है,”  मैं सिर्फ तीन सालों से ब्रिटेन में हूं लेकिन मैं रूसी हूं और युद्ध का समर्थन नहीं करता। चार्ल्स-डार्विन के शहर श्रुसबरी में रहने वाले एक पर्यावरण सलाहकार बिडवेल पोलैंड के हैं और वो यूक्रेनियन के साथ खुद को खड़ा रखते हैं और कहते हैं इस मौके पर पुतिन का साथ कोई भी मानव अधिकार को महत्व देने वाला व्यक्ति नहीं देगा।

ब्रिटेन के अलावा यूरोप के ज्यादातर इलाकों में इस युद्ध के खिलाफ प्रदर्शन हो रहे हैँ। तकरीबन 13 लाख की आबादी वाले छोटे से देश इस्टोनिया की प्रधानमंत्री 44 साल की कया कलास ने जिस तरीके से पुतिन के फैसले का खुलकर विरोध किया उसका नतीजा देखने को मिला कि वहां की राजधानी में 30 हजार से ज्यादा लोग पुतिन के खिलाफ प्रदर्शन करने के लिए जमा हो गए। बर्लिन में पुलिस ने अनुमान लगाया कि यूक्रेन के लोगों के साथ एकजुटता दिखाने के लिए कम से कम 100,000 लोग एकत्र हुए, जबकि प्राग में 70,000 लोगों की विशाल भीड़ पुतिन के खिलाफ नारे लगा रही थी। मैड्रिड, पेरिस, वेनिस से लेकर ब्रसेल्स, और एमस्टर्डम तक यूरोप के लगभग सभी देशों में पुतिन विरोधी नारे लगाए जा रहे हैं और लोग यूक्रेन के साथ खड़े दिख रहे हैँ। निश्चित तौर पर यूरोप में जिस तरीके से पुतिन के इस कदम का विरोध आम लोगों ने किया है ऐसी आशंका पुतिन को भी नहीं रही होगी, नहीं तो दो दशक में पूरी दुनिया में जिस तरीके से पुतिन ने अपनी मजबूत छवि बनाई थी उसे ऐसे गंवाने का काम नहीं करते।

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