तीसरे विश्वयुद्ध से कितना दूर है यूरोप ?

यूरोप की सरकारें हीं नहीं जनता भी यूक्रेन के साथ
March 13, 2022
जेलेंस्की की जिद और पुतिन की सनक में बर्बाद होता यूक्रेन
March 13, 2022

इंग्लैंड से आउटलुक के लिए

रूस और यूक्रेन के बीच चल रहे युद्द के 11 दिन बीत चुके हैं। निश्चित तौर पर हमला करने से पहले रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को युद्ध के इतना लंबा खींचने की उम्मीद नहीं रही होगी। शायद यूरोप के बाकी देशों को भी न रही हो क्यूंकि यूरोपीय संघ या नेटो देश शुरु से युद्ध में सीधी भागीदारी से परहेज के करने के ही मूड में दिख रहे थे। लेकिन अब हकीकत ये है कि युद्ध के 11 दिन बीत चुके हैं और रूस पूरी तरह से राजधानी कीव पर भी कब्जा नहीं कर पाया है। जबकि रूस ने यूक्रेन पर तीन तरफ से हमला किया है दूसरे देशों की सीमाओँ से लगे शहरों को काफी नुकसान पहुंचाया है। युद्ध के मैदान से आ रही खबरों को सही मानें तो अब तक तकरीबन 20-25 हजार लोगों की जान चुकी है। यूक्रेन के राष्ट्रपति ने जेलेंस्की ने अपने एक बयान में कहा है कि 10 दिनों की लड़ाई में 10 हजार रूसी सैनिकों को मारा जा चुका है। जिन शहरों पर रूसी सैनिकों ने बमबारी की है उन तस्वीरों में दिख रहे हालात से साफ हो रहा है कि आम नागरिकों की काफी जानें गई हैं। यूक्रेन से अभी तक 15 लाख से ज्यादा लोग देश छोड़कर जा चुके हैं, कई शहर ऐसे हैं जहां लाशें सड़कों पर बिखरी पड़ी हैं बावजूद इसके न तो यूक्रेन झुकने को तैयार हो रहा है और न हीं रूस युद्ध रोकने के मूड में दिख रहा है। तो आखिर ये युद्ध अब किधर जा रहा है ?

अमेरिका के प्रस्ताव के बाद भी यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की ने देश छोड़ने से मना कर दिया और कहा है कि उनको मारने की अब तक तीन बार कोशिश की जा जुकी है, बजाए इसके मुझे यहां से निकालने के हमें और हथियार दिए जाएँ। जेलेंस्की जब वीडियो काँफ्रेंसिंग के जरिए अमेरिका कांग्रेस को संबोधित कर रहे थे तो उन्होंने अमेरिका से रूस में बने फाइटर प्लेन की मांग रखी और कहा उनके पायलट उसे चलाना जानते हैं, साफ है कि जेलेंस्की अभी झुकने को तैयार नहीं है। साथ ही जेलेंस्की नेटो देशों से दुखी हैं और बार बार अनुरोध कर रहे है कि उनके देश पर आसमान से बसर रहे बम-गोलों से नेटो देश उनको बचाने के लिए आगे बढ़ें यानी यूक्रेन को नो फ्लाई जोन घोषित करेँ। हालांकि जेलेंस्की की इस मांग को ब्रिटेन पहले ही नकार चुका है और उसका साफ साफ कहना है कि ऐसा करना मामले को और गंभीर करना है क्यूंकि इसे सीधे तौर पर नेटो देशों की युद्ध में भागीदारी मानी जाएगी। लेकिन ब्रिटेन या नेटो देशों के इस कदम से पुतिन संतुष्ट नहीं दिखते और पुतिन ने यूरोपीय संघ और नेटो देशों द्वारा लगाए गए आर्थिक प्रतिबंधों को भी युद्ध की घोषणा के समान बताया है। खासकर ब्रिटेन पर पुतिन की निगाहें ज्यादा टेढ़ी हो रही हैं और उन्होंने चेतावनी दी है कि यूक्रेन पर नो-फ्लाई ज़ोन लगाने के किसी भी प्रयास को सशस्त्र संघर्ष में भागीदारी के रूप में देखा जाएगा।

ब्रिटेन समेत तमाम नेटो देश रूस पर ताबड़तोड़ आर्थिक प्रतिबंध लगा रहे हैं, स्विफ्ट बंदी के जरिए बैकिंग सिस्टम से रूस को बाहर करने से लेकर दुनिया भर के तमाम बड़े ब्रांड्स के द्वारा रूस के बाजार से मुंह मोड़ने का कदम निश्चित तौर पर रूस को परेशान कर रहा है। इधर ब्रिटेन में तमाम रूसी धनाढ्यों की संपत्ति सीज किए जाने से भी पुतिन की भौहें ब्रिटेन पर तनी हैं और बार बार क्रैमलिन से आने वाले बयान में ब्रिटेन को यूक्रेन की मदद न करने के लिए कहा जाता है। इधर ब्रिटेन के संसद में पूरे हफ्ते यूक्रेन और रूस पर ही चर्चा होती रही। ब्रिटेन की विपक्षी पार्टी ने सरकार पर इस बात के लिए जोर डाला है कि रूस पर लगाई जाने वाली पाबंदियों पर और तेजी लाई जाए ताकि रूस को आर्थिक तौर पर पंगु किया जा सके। रूस की आर्थिक कठिनाईयां जितनी बढ़ रही हैं पुतिन यूक्रेन पर उतने सख्त दिख रहे हैं साथ ही बार बार अपने बयानों में ब्रिटेन को चेतावनी देते नजर आते हैं। रूस के विदेश मंत्रालय ने बयान जारी कर कहा कि आर्थिक प्रतिबंध का उन्माद फैलाने में लंदन की मुख्य भूमिका दिख रही है रूस यूक्रेन को दिए जा रहे ब्रिटिश मदद को कभी नहीं भूलेगा। साथ ही पुतिन ने एक बयान में कहा कि अगर यूक्रेन घुटने नहीं टेकता है तो उसे तहस नहस कर दिया जाएगा और ये संघर्ष जल्द ही यूक्रेन से आगे भी फैल सकता है। जब हमने लंदन के काउन्सिलर शरद कुमार झा से पूछा कि पुतिन की धमकियों और ब्रिटेन की मौजूदा परिस्थितियों को ब्रिटेन कैसे देखता है और राजनीतिक दृष्टिकोण से तीसरे विश्व युद्ध की संभावनाओँ को कैसे देखता है तो उन्होंने साफ साफ कहा कि यूरोप एक विकसित परिपक्व महासाम्राज्य है और संस्कृति एवं सभ्यता का संचय भी, पर तीसरे विश्व युद्ध से बचने के लिये एकात्मकता और धैर्य बहुत जरूरी है।  ज़मीन, धर्मनिष्ठा और राजतंत्र की लड़ाई सदियों से चली आ रही है।  मिला क्या ? मौत, विभाजन, विनाश उन्माद, आतंक और खौफ की ललकार।  ऐसी गतिविधि पर तुरंत रोक नहीं लगाई जाए तो तीसरी विश्व युद्ध निश्चित दूर नहीं। सकारात्मक जागरूकता से ही मौजूदा दौर में युद्ध से बचा जा सकता है। उधर ब्रिटिश चीफ़ ऑफ़ डिफ़ेंस स्टाफ़ एडमिरल सर टोनी रैडेकिन ने कहा कि रूस की धमकियों को लेकर ब्रिटेन और उसके सहयोगी काफ़ी सतर्क हैं। वैसे तो रैडेकिन ने पुतिन की धमिकयों को हास्यापद बताया लेकिन ये भी साफ किया कि ब्रिटेन, रुस और ब्रिटेन दोनों की क्षमता को लेकर पूरा आश्वस्त है। इस बीच नेटो देशों ने पूर्वी यूरोप में अपने ऑपरेशन्स बढ़ा दिए हैं और पोलैंड की सीमा पर एयरबोर्न वार्निंग सिस्टम से लैस एवाक्स विमानों की तैनाती कर दी है। जाहिर है कि नेटो अपनी सीमा सुरक्षित रखने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ रहा है।

अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन का यूक्रेन के विदेश मंत्री, दिमित्रो कुलेबा से पोलिश-यूक्रेन सीमा पर मुलाकात और बातचीत, इजरायल के प्रधान मंत्री नफ्ताली बेनेट का मास्को जाकर पुतिन से मिलना फिर उसके बाद जर्मन चांसलर ओलाफ स्कोल्ज़ से मिलने के लिए बर्लिन जाना निश्चित तौर तीसरे विश्व युद्ध की संभावनाओँ को टालने की कवायद ही है। साथ ही ब्रिटेन ने रुस में अपने विदेश कार्यालय के जरिए संदेश जारी किया है कि बिना देरी किए उन्हें देश से निकल जाना चाहिए, इस वक्त रूस में 6 हजार से ज्यादा ब्रिटिश नागरिक अलग अलग व्यवसायिक कारणों से वहां हैं और एक तरह से फंसे हुए हैँ। ये सारे घटनाक्रम सुखद संकेत नहीं है, नेटो देश और यूरोपीय संघ के द्वारा लगाए गए आर्थिक प्रतिबंधों की परिणति ये होनी है कि रूस का 600 बिलियन डॉलर के विदेशी मुद्रा भंडार का 60 फीसदी पैसा अवरुद्ध हो जाएगा। पुतिन की प्रवृत्ति बताती है कि इन प्रतिबंधो से झुकने के बजाए कहीं वो और उग्र न हों जाएँ। साथ ही पुतिन अमेरिका को चुनौती देना चाहते हैं और बताना चाहते हैं कि अगर अमेरिका इराक और अफगानिस्तान में हमले कर सकता है को तो वो यूक्रेन में क्यूं नहीँ। इतना ही नहीं पुतिन का ये भी दबाव रहता है कि भौगोलिक दृष्टि से अगर सीमा सुरक्षा की बात करें तो भी नेटो में अमेरिका क्यूं शामिल है? उधर नेटो के बाकी सदस्य देश अमेरिका से दूरी नहीं बनाना चाहता। ऐसे में यूक्रेन का युद्ध अगर जल्द खत्म नहीं हुआ तो ये प्रयोगात्मक युद्ध भूमि के तौर पर पूरी तरह बरबाद तो होगा ही साथ ही भले ही विश्व युद्ध न हो लेकिन कुछ और छोटे यूरोपीय देशों को पुतिन की जिद के कारण नुकसान उठाना पड़ सकता है।

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