यूक्रेन को तबाही से बचाने की चुनौती से जूझता यूरोप

क्या ब्रिटेन और यूरोपीय संघ के आर्थिक प्रतिबंध और निंदा प्रस्ताव से डरेगा रूस ?
March 13, 2022
यूरोप की सरकारें हीं नहीं जनता भी यूक्रेन के साथ
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इंग्लैंड से आउटलुक के लिए

बुधवार को ब्रिटिश संसद में ब्रिटेन में यूक्रेन के राजदूत वायडम प्रेस्टिको के गैलरी में पहुंचने पर सभी सांसदों ने खड़े होकर और ताली बजाकर स्वागत किया। प्रेस्टिको यूक्रेन मसले पर ब्रिटिश सांसदों का मत सुनने आए थे। स्पीकर ने कहा कि मैं इस सदन को हमेशा ताली बजाने से रोकता हूं लेकिन ये एक ऐसा अवसर है जहां पूरे ब्रिटिश समुदाय की ओर से ये बताया जा रहा है कि इस निर्णायक घड़ी में हम यूक्रेन की जनता के साथ हैँ। वाकई ऐसा अवसर दुनिया के किसी भी सदन में बहुत कम देखा जाता है जब पक्ष और विपक्ष किसी मुद्दे पर एक सुर में बात कर रहे होँ, दोनों पक्ष एक दूसरे की तारीफ कर रहे हों और यही हो रहा था बुधवार को जब लेबर पार्टी के सीनियर नेता यूक्रेन के मसले पर सरकार की तारीफ कर रहे थे और प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन लेबर पार्टी के नेताओं के समर्थन के लिए उनकी तारीफ कर रहे थे। लेकिन क्या इतना भर काफी है, क्या सिर्फ अच्छी अच्छी बातों से यूकेन का भला हो सकता है ? या फिर तहस नहस हो रहे यूक्रेन को बचाने के लिए युद्ध ही एकमात्र रास्ता है, ऐसे तमाम सवाल थे जो ब्रिटिश संसद में काफी देर तक गूंजते रहे।

 स्कॉटिश पार्टी के सांसद इयान ब्लैकफर्ड के सवालों का जवाब देते हुए ब्रिटिश प्रधानमंत्री ने ये तो कह दिया कि निस्संदेह पुतिन युद्ध अपराधी हैं और पुतिन को इतिहास कभी माफ नहीं करेगा, लेकिन क्या ये कह देने भर से यूक्रेन की जनता को मरने से रोका जा सकता है। ऐसी परिस्थिति में आखिर ब्रिटेन क्या कर रहा है? यूरोप क्या कर रहा है ?  क्या यूरोपियन यूनियन के लिए पुतिन को युद्ध का अपराधी साबित करना आसान होगा ? शाम होते होते जब संयुक्त राष्ट्र की आपात आम सभा हुई तो उसमें यूक्रेन पर रूस के आक्रमण के ख़िलाफ़ लाए गए निंदा प्रस्ताव में सिर्फ पांच देशों ने रूस के समर्थन में मतदान किया जिसमें एक रूस और दूसरा बेलारूस थे। 193 सदस्य देशों में 141 ने रूस का विरोध किया और भारत-चीन समेत 35 देश मतदान से दूर रहे । रूस के खिलाफ पूरी दुनिया में एक माहौल तो बन रहा है लेकिन सिर्फ इस कदम से यूक्रेन की निर्दोष जनता को नहीं बचाया जा सकता ।  आइए इसको जरा समझने की कोशिश करते हैं कि यूक्रेन क्या चाह रहा है और यूरोपीय संघ उसमें किस हद तक मदद कर पा रहे हैँ।

यूक्रेनियन राष्ट्रपति जेलेंस्की बार बार अनुरोध कर चुके हैं यूरोपीय यूनियन ये साबित करे कि वो उसके साथ हैं। हालांकि ब्रिटेन अब यूरोपियन यूनियन का हिस्सा नहीं है लेकिन नेटो का प्रमुख देश है लिहाजा जेलेंस्की का इशारा ब्रिटेन की तरफ भी है। ब्रिटिश विदेशमंत्री लिज ट्रूस ने युद्ध शुरु होते ही कहा था जो भी ब्रिटिश नागरिक स्वेच्छा से यूक्रेन की तरफ से युद्ध में हिस्सा लेना चाहते हैं उसे वो नहीं रोकेंगी, लेकिन हकीकत है कि ब्रिटिश कानून इसकी इजाजत नहीं देता है और सीरिया के मामले में ऐसा देखा जा चुका है। प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन सदन में इस सवाल का जवाब दे रहे थे उधर 38 साल के एक ब्रिटिश बैंकर ने यूक्रेन की एंबेसी में जाकर यूक्रेन की तरफ से युद्ध लड़ने की अर्जी लगा दी। इस बैंकर सैम ओटवे ने कहा कि जॉर्ज ऑरवेल उनके प्रेरणा स्रोत हैं और ऐसे समय में हम जैसों को हाथ पर हाथ धरे नहीं बैठना चाहिए। मानवता के लिए निर्दोष यूक्रेनियन की मदद करनी चाहिए, सैम के साथ और कई लोग थे जो इस तरह से स्वेच्छा से यूक्रेनियन फौज की तरफ से युद्ध में शामिल होना चाह रहे थे। निश्चित तौर पर ये लिज ट्रूस बयान का ही असर था लिहाजा ब्रिटिश संसद में लेबर पार्टी के सांसद केर स्टर्मर के सवालों का जवाब देते हुए ब्रिटिश प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने साफ किया कि मौजूदा हालात में ब्रिटेन सीधे यूक्रेन की तरफ से युद्ध लड़ने नहीं जा सकता लेकिन यूक्रेन के लोगों की मदद के लिए हरसंभव प्रयास किए जा रहे हैं जिसमें दूसरे यूरोपीय देशों के साथ मिलकर रक्षात्मक सैन्य सहायता तक मुहैया कराई जा रही है। तो यहां ये साफ है कि मौजूदा परिस्थिति में ब्रिटेन न तो अपनी सेना भेज सकता है और न हीं अपने लोगों से युद्ध लड़ने के लिए कह सकता है।

दूसरी महत्वपूर्ण मांग जो यूक्रेन कर रहा है कि यूक्रेन को नो फ्लाइजोन घोषित किया जाए

सैन्य संदर्भ में, एक नो-फ्लाई ज़ोन का मतलब है कि विमान को प्रतिबंधित हवाई क्षेत्र में प्रवेश करने से रोका जाए, अगर यूरोपियन संघ यूक्रेन के आकाश को नो फ्लाईजोन घोषित करता है तो उसके नेटो की सेना का सहारा लेना पड़ेगा जो भले ही जमीन पर रूस ने नहीं लड़ रही होगी लेकिन उसकी यूक्रेन की सुरक्षा आसमान में कर रही होगी।  आमतौर पर हमलों या निगरानी को रोकने के लिए। ब्रिटेन की सत्ताधारी पार्टी के सांसद टोबाइस एल्वुड, जो रक्षा समिति की अध्यक्षता करते हैं खुद भी सेना में रहे हैं, नो-फ्लाई ज़ोन के विचार का समर्थन करते हैं और उनका मानना है कि इससे आम नागरिक की मौतों को रोका जा सकता है लेकिन वहीं दूसरी तरफ ब्रिटिश डिफेंस सेक्रेटरी बेन वॉलेस ने इसे सीधे खारिज कर दिया और तर्क दिया कि ऐसा करने से हम सीधे युद्ध की ओर बढ़ रहे हैं और रूस को ही मदद कर रहे होंगे। उनका मानना है कि दरअसल “यह युद्ध के समान है। अगर हम नो-फ्लाई जोन घोषित करने जा रहे हैं, तो हमें दुश्मन की क्षमता को कम करना होगा और हमारे नो-फ्लाई जोन को प्रभावित करना होगा।” इसके लिए नेटो की सहमति जरूरी होगी और लेकिन नाटो के महासचिव जेन्स स्टोल्टेनबर्ग ने सोमवार को इससे साफ इनकार करते हुए कहा था कि “हमारा यूक्रेन में जाने का कोई इरादा नहीं है, न तो जमीन पर और न ही हवा में।” और अमेरिका ने भी इसी तरह के कारणों से इसे खारिज कर दिया है। मतलब साफ है कि जेलेंस्की के इस आह्वान के बदले यूरोपीय संघ, ब्रिटेन और अमेरिका सिर्फ आर्थिक प्रतिबंध तक ही सीमित रहना चाहते हैं।

दुनिया को तीसरे विश्व युद्ध और परमाणु युद्ध से बचाने के लिए ही ब्रिटेन, अमेरिका और यूरोपीय संघ ने कड़े आर्थिक प्रतिबंध का रास्ता चुना है। ब्रिटिश वित्त मंत्री ऋषि सुनक के इस फैसले के बाद जिसमें रूस के ज्यादातर बैंकों को स्विफ्ट मैसेजिंग सिस्टम से बाहर कर दिया गया रुस के व्यापार पर काफी असर दिख रहा है। डॉलर के मुकाबले रशियन रूबल टूटा है पिछले एक हफ्ते में उसमें तकरीबन 60 फीसदी की गिरावट देखी गई है। युद्ध की भयावहता को भांपते हुए रूसी नागरिक बैंकों से अपने पैसे निकालने लगे इसलिए वहां की सत्ता ने बैंकों में पैसे रखने पर 20 फीसदी ब्याज देने का फैसला किया ताकि लोग पैसे न निकालें। साथ ही रूस के नेशनल बैक के यूरोपीय देशों के ब्रांच में रखा पैसा सीज कर दिया गया है जिससे कुछ हद तक आर्थिक समस्या भी खड़ी होने लगी है। ऐसा अनुमान है कि युद्ध में जाने से पहले रुस के पास 600 बिलियन डॉलर सरप्लस पैसा था जिसकी ताकत पर पुतिन ने युद्ध में जाने का फैसला किया होगा लेकिन यूरोपीय देशों में तकरीबन 125 बिलियन डॉलर फ्रीज हो चुका है। साथ ही सैकड़ों मिलियन डॉलर अब तक की लड़ाई में पुतिन खर्च कर चुके हैं लिहाजा आर्थिक संकट से रूस को तो जूझना होगा लेकिन तत्काल वो इस लड़ाई को सिर्फ इसलिए रोक देंगे कि उनके देश को आर्थिक नुकसान हो रहा है ऐसा नहीं दिख रहा। जाहिर है कि पुतिन की नीतियों की पूरी दुनिया में अभी जमकर आलोचना हो रही है और साथ ही ये आवाज भी उठ रही है कि पुतिन की नीतियां मानवता के लिए खतरा हैं लेकिन हमें ये समझना होगा कि पुतिन ही रूस नहीं है और रूस पुतिन तक सीमित नहीं हैं।

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