अंहकार और भ्रष्टाचार की कतार में लुटा दिए करोड़ों

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Anuranjan Jha, CEO, Media Sarkar

बिहार में इस साल चुनाव है, देश में CAA औऱ NRC का जमकर विरोध हो रहा है और नीतीश कुमार ने भी साफ कर दिया है कि बिहार में NRC लागू नहीं करेंगे। दूसरी तरफ CAA का भ्रम मिटाने के लिए केंद्रीय गृह मंत्री ने वैशाली में रैली कर संदेश दे दिया पार्टी बिहार में चुनाव नीतीश कुमार के ही नेतृत्व में लड़ेगी। इसी बीच नीतीश कुमार ने बीते 19 जनवरी को पूरे बिहार में लोगों को पर्यावरण सुरक्षा के लिए सड़कों पर कतार में खड़े होने का आह्वान किया। ऐसा वो दो बार पहले भी कर चुके हैं। 16 हजार किलोमीटर लंबी कतार की योजना थी और नीतीश कुमार ने ट्वीट कर बताया कि 18 हजार किलोमीटर से ज्यादा लंबी कतारों में लोग खड़े थे। नीतीश कुमार ने अपनी इस सफलता का ढोल पीटा और रिकॉर्ड में दर्ज कराने के लिए किए गए आयोजन को ऐतिहासिक करार दिया।

सवाल उठता है कि इस कतार से बिहार की जनता को मिला क्या, कुछ मिला भी कि नहीं। नीतीश कुमार पहले भी दो बार ऐसा कर चुके हैं। उससे अभी तक क्या हासिल हुआ ? पहली बार नीतीश कुमार ने शराब बंदी के लिए इसका आयोजन किया था, जमकर लोगों ने हिस्सा लिया, औरतें-बच्चे और बूढ़ों ने नीतीश कुमार को आशीर्वाद दिया और पूरे देश में इसकी सराहना हुई लेकिन नतीजा क्या निकला। लोग तो कतार में खड़े हो गए मगर शराब की बिक्री कहीं नहीं रुकी। हां शराब महंगी जरुर हो गई। शुरु में लगा कि पीने वाले कम हो जाएँगे लेकिन वो भी नहीं हो सका और देसी शराब का बाजार विदेशी शराब से भी महंगा हो गया। हद तो तब हो गई जब मालखाने में जब्त 9 लाख लीटर शराब की जानकारी अदालत को देते हुए सरकार ने कहा कि ये सारे शराब चूहे पी गए। मतलब पहली बार उत्साह में कतार में खड़ा हुआ बिहार अपने आप को ही झूठा साबित कर गया। दूसरा मौका आया जब नीतीश कुमार ने समाज की सबसे बड़ी बुराई दहेज उन्मूलन के लिए लोगों को कतार में खड़े होने का आह्वान किया। पिछली बार की तुलना में इस बार लोगों की तादाद कम हुई और जितनी उम्मीद थी वैसी सफलता नहीं मिली। दहेज के मामले में अक्सर देखा गया है कि अपनी बेटियों को दहेज देने से कतराने वाले लोग भी अपने बेटों की शादी में दहेज लेने के लिए आतुर रहते हैँ। निश्चित तौर पर यह बहुत बड़ा कारण था और दहेज विरोध में खड़े हुए लोग आने वाले दिनों में मोटी मोटी रकम दहेज में लेते हुए देखे गए।

यह तीसरा मौका था जब नीतीश कुमार ने बिहार की जनता से एक बार कतार में खड़े होने का आह्वान किया। नीतीश कुमार पिछले कुछ दिनों से बिहार में जल-जीवन-हरियाली यात्रा कर रहे हैं। चुनाव के साल में एक ऐसी यात्रा कर रहे हैं जिसमें आम जनता की दिलचस्पी कम ही रहती है क्यूंकि अगर जनता की दिलचस्पी पर्यावरण जैसे मुद्दों में होने लग जाए तो समस्याएं आधी हो जाएँ । पर्यावरण के लिए यात्रा करना और लोगों के बीच अलख जगाना तो एक सराहनीय काम है लेकिन क्या महज इऩ यात्राओँ से नतीजा निकल सकता है। अब यात्रा के दौरान ही नीतीश कुमार ने समूचे राज्य को एक बार फिर सड़क पर खड़ा हो जाने का फरमान जारी कर दिया।

हाड़ कंपाती ठंड में सारे जिले के जिलाधिकारियों ने स्कूलों के बच्चों को सड़क पर खड़े हो जाने का आदेश दे दिया। बिहार में पिछले कुछ सालों में जिस तरीके से अपराध ने अपना सिर उठाया है और हर रोज जिस कदर हत्या, लूट और बलात्कार की घटनाएं हो रही हैं ऐसे में पूरे प्रशासनिक अमले को एक राजनीति सनक के लिए झोंक देना और पूरे राज्य को सड़क पर खड़ा हो जाने के लिए कहना निश्चित तौर पर उचित नहीं है। इस योजना की मंशा पर सवाल तब और उठते हैं जब कतार में खड़े गांव-देहात के लोगों को यह मालूम नहीं कि आखिर उनको क्यूं खड़ा किया गया है। इस मानव श्रृंखला आयोजन के दौरान की कई तस्वीरें और वीडियो सामने आए। इऩ तस्वीरों और वीडियो को देखकर आप सहज अंदाजा लगा सकते हैं कि यह सत्ता की हनक और सनक का ही नतीजा है लोगों को सड़क पर कतार में खड़े हो जाने का फरमान जारी कर दिया गया। तमाम वीडियोज में से कुछ का जिक्र कर देता हूं ताकि आपको समझने में आसाना होगी कि इस आयोजन का परिणाम क्या निकला है। कटिहार के एक वीडियो में कुछ महिलाएं साफ साफ कह रही हैं कि वो अपनी गांव की समस्याओं के लिए लाइऩ में लगी हैं। न बिजली है, न सड़क है और न हीं गांव में कोई स्कूल है हम उसका विरोध करने के लिए लाइऩ में खड़े हैं। हम अपनी मांग सरकार के सामने रखने के लिए लाइन में लगे हैं। निश्चित तौर उनके लिए पर्यावरण के बारे में सोचना अभी दूर की कौड़ी है। मुजफ्फरपुर के एक वीडियो में कुछ लोग बात कर रहे हैं कि हमें नहीं मालूम कि क्यूं खड़ा किया गया है, गांव के मुखिया ने कहा और हम सब उसकी बात मानते हैं तो बस खड़ा हो गए। दरभंगा के एक वीडियो में खड़े युवा NRC और CAA के विरोध में खड़े हैं जबकि उनको उसका अर्थ नहीं मालूम है। कई तस्वीरें भी सामने आईं जिसमें छोटे छोटे बच्चे नंगे पांव में कतार में लगे हुए हैँ। सवाल यह नहीं है कि वो नंगे पांव खड़े हैं सवाल यह है कि उनके पांव में अब तक चप्पल नसीब नहीं। ऐसे में नीतीश कुमार यह कहकर अब पल्ला नहीं झाड़ सकते कि लालू यादव के शासन में सब कुछ तबाह हो गया। लालू यादव के शासन के बाद नीतीश कुमार भी पिछले 15 सालों से सत्ता में हैं और किसी भी राज्य की तस्वीर बदलने के लिए डेढ़ दशक का समय काफी होता है।

इसी बीच एक रिपोर्ट आई जिसमें कहा गया कि इस कतार का आयोजन करने के लिए जिन PR कंपनियों को संपर्क किया गया और ठेका दिया गया उनकी बातचीत से साफ हुआ कि इस पूरे आयोजन पर सरकार की ओर से 200 करोड़ का बजट है। राज्य से बाहर की इन कंपनियों ने पूरे इंवेंट को मैनेज किया और उसे विश्व रिकॉर्ड में शामिल कराने की प्लानिंग के साथ काम को अँजाम दिया। कुछ महीने पहले जिस प्रदेश में बाढ़ से जूझते, डूबते-उतराते लोगों को बचाने के लिए हेलीकॉप्टर की कमी से काम में बाधा आ रही थी वहीं इस कतार की तस्वीरें खींचने और उसकी वीडियोग्राफी कराने के लिए 10 हेलीकॉफ्टर लगाए गए और 100 ड्रोन से निगरानी की गई। जिस तरीके से सभी जिले के जिलाधिकारी पिछले एक महीने से इस कतार को सफल बनाने में जुटे थे और अपने जिले की समस्याओँ से ध्यान हट गया था। उसका नतीजा यह हुआ कि अपराध दिनों दिन बढ़ता रहा और टैक्सपेयर का पैसा इस सनक में बर्बाद हुआ। जितना पैसा लोगों को कतार में खड़े करने के लिए कर दिया गया उतने पैसे में न जाने जल जंगल और हरियाली के लिए कितने काम किये जा सकते थे। प्रदेश में बदहाल हो रही नदियों को दोबारा जिंदा करने, हजारों कुओँ की खुदाई करने और सैकड़ों हेक्टेयर जंगल बसाने का काम इऩ पैसों से हो सकता था। आंकड़ों की कलाबाजी छोड़ दें अभी भी बीमारू प्रदेश की तौर पर ही गिनती किए जाने वाले प्रदेश में स्कूल, अस्पताल और सड़कें इस पैसे बनाई जा सकती थीं । और कुछ नहीं तो वोट बैंक को ध्यान में रखकर शुरु की गई योजनाओं पर ही यह पैसा खर्च किया जा सकता था। लेकिन भ्रष्टाचार और अहंकार में आकंठ डूबे सूबे के मुखिया ने महज तमाशा के लिए जहां सैकड़ों करोड़ फूंक दिए वहीं कंपकंपाती ठंड में बूढ़े-बच्चे सबको सड़क पर खड़ा कर दिया। तस्वीरों और वीडियो से साफ था कि इस ड्रामे को लेकर लोगों का उत्साह अब कम होता जा रहा है लेकिन महज एक रिकॉर्ड में दर्ज कराने के लिए यह सारा तमाशा रचा गया।

कितना ही अच्छा होता कि जिन दो कारणों से पिछली मानव श्रृंखलाओँ का आयोजन हुआ उसका आकलन किया जाता और उस दिशा में कोई ठोस कार्रवाई होती, जनता को इस सनक से ज्यादा लाभ मिलता।

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