क्यूं अनसोशल है सोशल मीडिया !

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15 दिन पहले हमने आप सभी से एक बात शेयर की थी, आप लोगों से कहा था कि नए साल में सोशल मीडिया से दूसरी बनाने का इरादा है। इरादा अब भी अटल है। हमने आप सभी मित्रों से ये भी कहा था कि जो मित्र संपर्क में रहना चाहते हैं वो अपना फोन नंबर और ईमेल आईडी हमें इनबॉक्स करें। हम सोशल मीडिया से दूरी जरूर बनाएँगे लेकिन नए दौर में डिजिटल माध्यम को नहीं छोड़ सकते इसलिए दूसरा रास्ता अपनाएँगे। जिन मित्रों ने भी अपनी जानकारियां साझा की हैं उनको 15 जनवरी से पहले हम अपने साथ अपने नए ठिकाने पर जोड़ लेंगे। कैसे जुड़ेंगे और क्या क्या करेंगे इन सबकी जानकारी अगले कुछ दिनों में हम आपको आपके फोन नंबर और ईमेल आईडी पर बताते रहेंगे। अगले 15 दिनों तक इन सभी माध्यमों पर हम आगे की सूचनाएँ साझा करते रहेंगे लेकिन किसी प्रश्न का जवाब शायद यहां नहीं दे पाएँ। आज साल 2020 का आखिरी दिन है और कल से नया साल 2021 शुरु हो जाएगा, कहने को देश के तमाम संगठन इसे पश्चिमी सभ्यता का नया साल कहते हैं लेकिन अपने देश का सारा सिस्टम इसी कैलेंडर से चलता है इसलिए इसे नया साल माना ही जाना चाहिए कम से कम तब तक जब तक कि हम विक्रम संवत या शक संवत को नहीं अपनाते।

खैर.. हमारे अनुरोध पर तमाम मित्रों के संदेश भी आए, सबने अलग अलग सलाह दी लेकिन ज्यादातर मित्रों ने कहा कि यहां बने रहें। हमारे पेज और प्रोफाइल सबको मिलाकर तकरीबन 20 हजार लोग जुड़े हुए हैं लेकिन संदेश और जुड़े रहने का अनुरोध महज 500 लोगों के आए। हो सकता है कि कुछ और लोगों तक संदेश नहीं पहुंचा हो लेकिन इतनी मात्रा में इनएक्टिव लोगों का भार लेकर नहीं चला जा सकता। इसलिए इस आभासी दुनिया के तमाम मित्रों का शुक्रिया जो हमारे पेज और प्रोफाइल पर संख्या बढ़ाते रहे लेकिन जुड़ नहीं पाए। अब ये बड़ा मुश्किल काम हो जाएगा कि उन सभी को अपनी मित्र मंडली से विदा करूं, उसमें काफी वक्त जाया होगा और फिर भी नतीजा वो नहीं निकलेगा जिसकी वजह से हम सोशल मीडिया से जुड़े रहे हैँ। कई ऐसे मौके आए जब हमने अपने आभासी मित्रों से किसी न किसी अनजान या जानने वाले की मदद की गुहार लगाई। कई मित्र सामने भी आए लेकिन ज्यादातर मौके पर लोगों ने अनदेखा किया और ये एक बड़ी वजह है कि ये आभासी माध्यम जिसे हम सोशल मीडिया कहते हैं अनसोशल बना हुआ है।

समाज भागीदारी से बनता है, जिम्मेदारी से बनता है लेकिन जिस समाज में सिर्फ आलोचना होने लगे वो समाज विभक्त हो जाता है। जिस समाज में कटुता आ जाए वो समाज विद्रूप हो जाता है। नए माध्यम के इस सोशल मीडिया का अब यही हाल हो चुका है, अगर आप इस माध्यम पर अपना वक्त बिता कर समाज को कुछ भी नहीं दे सकते तो इसे सोशल मीडिया नहीं कहना चाहिए। सालों पहले हमने इस माध्यम को इसलिए चुना था क्यूंकि हमें लगा इस माध्यम से नए लोग मिलेंगे और कुछ नया क्रिएटिव करेंगे लेकिन तमाम कोशिशों के बावजूद ये अफसोस रहा। हालांकि कई अवसरों पर ये काम भी आया तो जिन अवसरों पर ये काम आया वैसे अवसरों को ज्यादा से ज्यादा बढ़ाया जा सके ये कोशिश होनी चाहिए। इन्हीं कोशिशों में हम कुछ नया प्रयास करने जा रहे हैँ। कई मित्रों ने सलाह दी कि यहां आना कम कर दीजिए लेकिन इसे छोड़िए नहीं, शायद उनको ये भी लगा क्यूंकि हमने अपने पिछले पोस्ट में जिक्र किया था कि यहां कोई भी किसी को कुछ भी बोल कर चला जाता है बिना ये सोचे कि उसका असर सामने वाले के दिल-दिमाग पर क्या होगा, तो हम इनसे परेशान होकर भी यहां से विदा होना चाहते हैं तो मित्रों हम आपको स्पष्ट करें कि व्यक्तिगत तौर मैं बिंदास व्यक्ति हूं, तनाव को अपने आस-पास नहीं फटकने देता हूं और यही वजह है कि हमें फर्क नहीं पड़ता ऐसी किसी घटनाओं का लेकिन फर्क तब पड़ता है जब हमारी छोटी सी कोशिश किसी को बड़ी मदद दिला सकती है और समाज में बदलाव ला सकती है लेकिन हम उतना भी नहीं करते। दरअसल इन तमाम डिजिटल माध्यमों को बेहतरी के लिए इस्तेमाल किया जाना चाहिए।

पिछले कुछ सालों में हमने देखा है कि ट्विटर के माध्यम से पूरी दुनिया में तमाम समस्याओँ से निबटा गया। अपने देश में भी स्वर्गीय सुषमा जी ने विदेश मंत्री रहते हुए ट्विटर के जरिए आमलोगों की जितनी समस्याओँ का समाधान किया उसकी कल्पना बिना उस माध्यम के नहीं की जा सकती। सुरेश प्रभु ने रेलवे में तमाम शिकायतों का निबटारा ट्विटर के जरिए किया। ये तो महज उदाहरण है लेकिन फेसबुक वैसा नहीं कर पाया, आप इन दिनों देखते होंगे कि फेसबुक का एक विज्ञापन इन दिनों हर जगह आता है जिसमें लॉकडाउन के दौरान व्यापार बढ़ाने और समाज से जुड़कर समाज को बेहतर बनाने की कवायद दिखाई जाती है। इन्हें ऐसा करने की जरूरत इसलिए आ पड़ी क्यूंकि इस माध्यम का इस्तेमाल सही दिशा में नहीं हो रहा है। मैं उधर भटकना नहीं चाहता इसलिए

आप सभी को अब ये बताना चाहता हूं कि नए साल में हमारी हर रोज मुलाकात वेबसाइट anuranjanjha.com पर होगी साथ ही मेरी आवाज के साथ कई और वरिष्ठ पत्रकारों की आवाज भी आप TheWebRadio.in पर सुन सकेंगे। अगले 15 दिनों तक हम एक तरीके से ट्रायल मोड में होंगे इसलिए थोड़ी परेशानियां आपको भी होंगी लेकिन मकर संक्रांति के बाद से हर मोड एक्टिव हो जाएगा। वहां हम कुछ ऐसे लोगों का समूह बनाएँगे जो समाज के लिए कुछ सार्थक योगदान कर सकेँ, हर उम्र, हर वर्ग और हर धर्म के साथ मतभेद को भी तवज्जो रहेगी लेकिन मनभेद को जगह नहीं दी जाएगी। हर मुद्दे पर बेबाक राय रखी जाएगी । इस बीच मेरे कई जानने वालों ने कहा कि आप राजनीतिक सोच के स्तर पर एक तरफ क्यूं नहीं दिखते ? मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ उन मित्रों पर क्यूंकि वो राजनीतिक व्यक्ति नहीं थे फिर वो क्यूं चाहते हैं कि एक पत्रकार किसी ओर झुका नजर आए। हम आप सभी से भी गुजारिश करेंगे पूर्व से स्थापित किसी विचारधारा से पूरी तरह से बंधे होने की उम्मीद आपको हमसे नहीं करनी चाहिए। मैं एक स्वतंत्र विचारों वाला व्यक्ति हूं और हमारी समझ में समाज और देश के हर वर्ग के लिए और अगली पीढ़ियों के लिए जो उचित लगता है वैसा ही रिएक्ट करता हूं। इस दौर में जहां अपने देश में तमाम मीडिया संगठन या पत्रकार किसी न किसी खूंटे से बंधे नजर आते हैं वहां स्वतंत्र सोच पर सवाल करना समाज के दोहरेपन का परिचायक है। इसलिए हम आप सभी मित्रों से उम्मीद करेंगे कि हम अपनी कोशिशों से समाज के बीच हो रहे हूंबो हूंबो का पर्दाफाश करेंगे न कि खुद हूंबो हूंबो करेंगे। कई और डिजिटल प्लेटफार्म आने वाले दिनों में पूरी तरह से एक्टिव मोड में नजर आएँगे। Champaranlive.com और MediaSarkar.com को सन्नी कुमार मिश्र, अरुणेश कुमार और हीरालाल प्रसाद जी बखूबी संभाल रहे हैं। इस माध्यम के जरिए सत्यम, सुंदरम जैसे युवा साथी मिले और प्रभाकर कुमार राय जैसे संवेदनशील इंसान जिन्होंने हमारी एक आवाज पर जरूरत के वक्त हमारे एक साथी को दिल खोलकर मदद किया, मदद की रकम नहीं मदद की इच्छा मायने रखती है। लेकिन जरूरत के वक्त जरूरतमंद साथी को प्रभाकर के भेजे गए 50 हजार रुपए काफी संबल बने। इसके लिए हम इन सभी मित्रों के शुक्रगुजार हैँ।

जाते जाते एक बात और आज आपलोगों से शेयर करता हूं, नोट करिएगा सोशल मीडिया में फेसबुक का भविष्य अब अपनी ढलान की ओर है, भारत जैसे देशों ने इसका बाजार बनाया हुआ है लेकिन इसमें इतनी बेइमानियां हो रहीं है कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इसकी साख गिरती जा रही है। और ये बात हम इसलिए नहीं कह रहे कि हम फेसबुक से विदा हो रहे हैं, हम तो पूरी सोशल मीडिया की जमात से अलग हो रहे हैं क्यूंकि हम एक नया सही सोशल मीडिया नेटवर्क बनाना चाहते हैँ। साथ ही एक और बात आप सभी से आज साझा करता हूं, 2017 के आखिरी महीनों से लेकर अप्रैल 2018 के बीच फेसबुक ने निदेशक, न्यूज़ पार्टनरशिप, इंडिया के रोल के लिए भारत के कई लोगों के साक्षात्कार किए, इस पद के लिए फेसबुक से हमारी भी कई दौर की चर्चा हुई। उसी बीच कैंब्रिज एनालिटिका का विवाद सामने आया और फेसबुक ने सारी नियुक्तियां रोक दीं, बाद में सरकारी दबाव के बीच अप्रैल 2018 में ईमेल के जरिए हमें रिजेक्ट कर दिया गया, आप सभी की सूचना के लिए उस ईमेल का स्क्रीन शॉट शेयर कर रहा हूं। आखिरी दौर की हमारी बातचीत में हमने उन अधिकारियों से जो बताया था कि भविष्य का फेसबुक कैसा हो ? सच पूछिए तो अब कुछ वही करने की योजना है लेकिन हम जानते हैं कि हमारे मौजूदा संसाधन में ये असंभव सा है लेकिन उसी तर्ज पर कुछ और सोचा ही जा सकता है। सभी मित्रों को नववर्ष की हार्दिक शुभकानाएँ ।

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