चांदनी किस लिए बुझी ऐसे, चांद की आंख में चुभा क्या था

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उम्र में हमसे 10-11 साल बड़ी रही होंगी और हमने उनकी पहली फिल्म अपने 10-11 साल की आयु में देखी होगी। दस साल बड़ी उम्र की अभिनेत्री आपका पहला क्रश हो जाएं यह कोई अनोखी बात नहीँ। जब आप स्कूल-कॉलेज की दहलीज पर खड़े हों तो इनके पोस्टर आपके दीवारों पर टंग जाएं वो भी अक्सर होता है लेकिन जब उनकी फिल्मों की दीवानगी इस कदर हो जाए कि कोई भी आनेवाली फिल्म के बारे में आपको पहले से पता हो और पहले दिन ही देखने का जुनून सवार हो जाए तो समझिए कि उस अदाकार से आपका कोई न कोई नाता बन रहा है। और गजब तो तब हो जाए जब उनकी फिल्मों के लिए आप घंटों छोटे कस्बे के सिंगल विंडो सिनेमाघर की खिड़की पर खड़े हुए हों एक दिन आपको उनके साथ मंच साझा करने का अवसर मिल जाए। अपना भी कुछ कुछ ऐसा ही नाता था श्रीदेवी से, 85-95 तक उनकी लगभग हर फिल्म देखी होगी, कई तो कई-कई बार।

सन 2009 में नोएडा में एक कार्यक्रम में जब हमने उनकी फिल्मों को लेकर अपनी दीवानगी के किस्से बताए तो काफी देर तक हंसती रहीं। आज उनके नहीं होने के बाद उऩकी वो हंसी बार-बार याद आती है। निश्छल, निष्कपट और सौम्य। हमारी-उनकी कोई करीबी दोस्ती नहीं थी लेकिन बातें बीच बीच में हो जाया करती थीं। ‘इंग्लिश-विंग्लिश’ देखकर बधाई संदेश भेजा था तो ‘मॉम’ से ठीक पहले संदेशा आया कि फिल्म देखकर बताना। पंद्रह साल बाद जब उन्होंने फिल्मों की ओर दोबारा रुख किया तो हमने एक बार उनको संदेश भेजा कि कुछ समय में एक आपके लिए कहानी लेकर आउंगा, हर ख्वाब कहां पूरा होता है। उनका भी तो अपने बेटी को रुपहले पर्दे पर देखने का ख्वाब अधूरा ही रह गया। इन दिनों वो अपनी बेटी जान्ह्वी को लॉन्च करने के लिए प्रयासरत थी, उसके सुनहरे भविष्य के ख्वाब देख रही हम सबकी चांदनी, चांद के पार चली गईँ।

पिछले दो दिनों से सुबह-सुबह ही बुरी खबर आ जाती है। कल नीलाभ मिश्र के जाने की खबर के सदमे से निकले नहीं थे कि आज सुबह की शुरुआत श्रीदेवी के नहीं होने से हुई। नीलाभ जिस कदर पत्रकारिता में शांत-सौम्य और सरोकारी पत्रकारिता करते रहे उसी तरह सिनेमाई दुनिया में श्रीदेवी अपनी अदाकारी से सालों तक लोगों के दिलों पर राज करती रहीं। सच पूछिए तो भारतीय सिनेमा की एकमात्र ऐसी अभिनेत्री थीं जिसे सही मायने में सुपरस्टार कहा जा सकता है। जब हम बड़े हो रहे थे तो गांव-घर में चाची-भाभी से अक्सर गांव-घर की लड़कियों को श्रीदेवी के नाम से “उलाहना” देते सुना है। श्रीदेवी महज अदाकारा नहीं थी एक जीवंत किवंदंती थी, छोटे छोटे कस्बों, गांवों के नौजवानों की बात तो छोड़िए वो तो उम्रदराज महिलाओं के लिए भी स्टाइल आइकन थीं। बिंदी-साड़ी से लेकर चूड़ी तक महिलाएं उनकी फिल्मों से कॉपी करती थीं।

अभी दो-तीन दिन पहले मित्रों के बीच चाय पर चर्चा के दौरान मौजूदा दौर की सुपरस्टार पर बात निकली तो हमने दोहराया था कि अभिनेत्रियां कई नामचीन हुईं, मधुबाला, रेखा, हेमा से लेकर माधुरी तक अभिनेत्रियों ने लोगों के दिलों पर राज किया। आज के दौर में साल-दो साल से ज्यादा अभिनेत्रियां लोगों को याद नहीं रहतीं, लेकिन अस्सी और नब्बे के दशक में तमाम बेहतरीन अदाकारों के बीच अगर निरंतर किसी का अभिनेत्री का डंका बजा तो वो निस्संदेह श्रीदेवी हैं। जब वो अपने करियर की बुलंदी पर थी तो बोनी कपूर से अचानक शादी करके फिल्मों से दूर हो गईँ और उसके बाद कई सारी अभिनेत्रियों में उनकी जगह पाने की होड़ मच गई लेकिन वो कुर्सी खाली ही रह गई।

अपनी याद्दाश्त के लिहाज से बात करूं तो सिनेमा हॉल में पहली फिल्म देखी थी नास्तिक और दूसरी थी मकसद. नास्तिक से जिस कदर अमिताभ ने हमारे मन पर छाप छोड़ी थी वैसे ही कई सितारों से सजी होने के बावजूद मकसद की अदाकारा श्रीदेवी हमारी पसंदीदा हो गईं। आज का दौर नहीं था लिहाजा छोटे शहरों में नई फिल्में रिलीज के काफी समय बाद ही आती थी और टीवी पर तो पूछिए ही मत। लेकिन फिल्मों की खास समझ नहीं होने के बावजूद 11-12 साल की उम्र में ही हमें उस फिल्म में श्रीदेवी की अच्छी लगीं। जैसे जैसे बड़े होते गए श्रीदेवी एक अदाकारा से ज्यादा एक ख्वाब की तरह साथ बड़ी होने लगी। श्रीदेवी उस उम्र में हमारे लिए महज एक एक्टर नहीं पूरा ख्बाव थीं। मिस्टर इंडिया की हवा-हवाई से लेकर लम्हे की पागल-दीवानी तक हर किरदार अपना सा लगता और अब भी आंखों के सामने घूम रहा है। नगीना के इच्छाधारी नागिन का रोमांटिक किरदार तो मानो ऐसा है कि आपको जीवन में कभी सांप से डर ही नहीं लगे तो दूसरी ओर उनकी आंखें आपको अंदर तक हिला दें। जिस दौर में अमिताभ बच्चन का सिक्का चल रहो हो और कई दूसरे अभिनेता अपना परचम लहरा रहे हों उस वक्त सदमा, चालबाज और नगीना जैसी महिला प्रधान फिल्मों के जरिए अपना दबदबा कायम रखना मामूली बात नहीं। हर तरह के किरदार को ही जीने का जज्बा था कि श्रीदेवी ने दो दशक से ज्यादा हमारे दिलों पर एकसमान राज किया। अपने 54 साल की उम्र में पचास साल लंबा फिल्मी करियर जिया। और आज जब चली गईं तो शायर आलोक श्रीवास्तव की पंक्तियां याद आ रही हैं।

चांदनी किस लिए बुझी ऐसे, चांद की आंख में चुभा क्या था।

“चांदनी” को नमन!

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